Monday, 4 January 2021

लिफ़ाफ़ा

यादें ही अक्सर फ़साने बन जाते है ए दोस्त,
गौर से देखना जरा,
शायद पन्नो मे कही सुखे गुलाब मिल जाये ।

फित्रत है इन्सान कि, मांगने की !..
उंगली पकडओ  तो, हात थामने की !..
कभी प्यार है उस आरजू  मे,
या शायद कभी खुदगर्जी भी हो?

बंद लीफाफे में हि सही, तुम बाटते रहो अनमोल लम्हे,
क्या पता?
किसीं मोड पर कोई खूबसुरत लिफ़ाफ़ा तुम्हारे लिये भी कोई छोड गया हो. 

                                     - साहिल

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